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Wednesday, May 13, 2015

मेरी ज़िन्दगी पे न मुस्कुरा...

मेरी ज़िन्दगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िन्दगी का अलम नहीं
जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ां बहार से कम नहीं

*अलम=दुख; खिज़ा=पतझर

~ शकील बँदायूनी


  May 13, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh 

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