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Saturday, May 2, 2015

चलो फिर से मुस्कराएं...!




चलो फिर से मुस्कराएं
चलो फिर से दिल जलाएं

जो गुजर गई हैं रातें
उन्हें फिर जगा के लाएं
जो बिसर गई हैं बातें
उन्हें याद में बुलाएं
चलो फिर से दिल लगाएं
चलो फिर से दिल लगाएं
चलो फिर से मुस्कुराएं

किसी शह-नशीं पे झलकी
वो धनक किसी क़बा की
किसी रंग में कसमसाई
वो कसक किसी अदा की
कोई हर्फ़े-बे-मुरव्वत
किसी कुंजे-लब से फूटा
वो छनक के शीशा-ए-दिल
तहे-बाम फिर से टूटा
**शह-नशीं=बैठने का उच्च स्थान; क़बा- अंगरखा
हर्फ़े-बे-मुरव्वत=निष्ठुर शब्द; तहे-बाम=छत के नीचे

ये मिलन की, नामिलन की
ये लगन की और जलन की
जो सही हैं वारदातें
जो गुजर गई अहिं रातें
जो बिसर गई है बातें

कोई इनकी धुन बनाएं
कोई इनका गीत गाएं
चलो फिर से मुस्कुराएं
चलो फिर से दिल जलाएं

~ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

  May 2, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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