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Thursday, May 21, 2015

तू है राधा अपने कृष्ण की



तू है राधा अपने कृष्ण की
तिरा कोई भी होता नाम
मुरली तिरे भीतर बजती
किस वन करती विश्राम

या कोई सिंहासन विराजती
तुझे खोज ही लेते श्याम
जिस संग भी फेरे डालती
संजोग में थे घनश्याम

क्या मोल तू मन का माँगती
बिकना था तुझे बेदाम
बंसी की मधुर तानों से
बसना था ये सूना धाम

तिरा रंग भी कौन सा अपना
मोहन का भी एक ही काम
गिरधर आके भी गए और
मन माला है वही नाम

जोगन का पता भी क्या हो
कब सुबह हुई कब शाम

~ परवीन शाकिर

  May 21, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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