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Saturday, May 23, 2015

प्यार का मौसम शुभे हर रोज़...



सेज पर साधें बिछा लो,
आँख में सपने सजा लो
प्यार का मौसम शुभे हर रोज़ तो आता नहीं है।

यह हवा यह रात, यह
एकाँत, यह रिमझिम घटाएँ,
यूँ बरसती हैं कि पंडित-
मौलवी पथ भूल जाएँ,
बिजलियों से माँग भर लो
बादलों से संधि कर लो
उम्र-भर आकाश में पानी ठहर पाता नहीं है।
प्यार का मौसम शुभे हर रोज़ तो आता नहीं है।।

दूध-सी साड़ी पहन तुम
सामने ऐसे खड़ी हो,
जिल्द में साकेत की
कामायनी जैसे मढ़ी हो,
लाज का वल्कल उतारो
प्यार का कँगन उजारो,
'कनुप्रिया' पढ़ता न वह, 'गीतांजलि' गाता नहीं है।
प्यार का मौसम शुभे हर रोज़ तो आता नहीं है।।

हो गए सब दिन हवन, तब
रात यह आई मिलन की
उम्र कर डाली धुआँ जब
तब उठी डोली जलन की,
मत लजाओ पास आओ
ख़ुशबूओं में डूब जाओ,
कौन है चढ़ती उमर जो केश गुथवाता नहीं है।
प्यार का मौसम शुभे हर रोज़ तो आता नहीं है।।


है अमर वह क्षण कि जिस क्षण
ध्यान सब जतकर भुवन का,
मन सुने संवाद तन का,
तन करे अनुवाद मन का,
चाँदनी का फाग खेलो,
गोद में सब आग ले लो,
रोज़ ही मेहमान घर का द्वार खटकाता नहीं है।
प्यार का मौसम शुभे हर रोज़ तो आता नहीं है।।

वक़्त तो उस चोर नौकर की
तरह से है सयाना,
जो मचाता शोर ख़ुद ही
लूट कर घर का ख़ज़ाना,
व़क्त पर पहरा बिठाओ
रात जागो औ' जगाओ,
प्यार सो जाता जहाँ भगवान सो जाता वहीं है।
प्यार का मौसम शुभे हर रोज़ तो आता नहीं है।।

~ गोपाल दास 'नीरज'

   May 23, 2015 | e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

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