
मुलायम गर्म समझौते की चादर!
ये चादर मैंने बरसों में बुनी है,
कहीं भी सच के गुल-बूटे नहीं हैं,
किसी भी झूठ का टांका नहीं है।
इसी से मैं भी तन ढंक लूंगी अपना,
इसी से तुम भी आसूदा रहोगे!
न ख़ुश होगे, न पज़मुर्दा रहोगे।
*आसूदा=तृप्त, आश्वस्त; पज़मुर्दा=मुरझाया हुआ
इसी को तान कर बन जायेगा घर,
बिछा लेंगे तो खिल उठेगा आंगन,
उठा लेंगे तो गिर जायेगी चिलमन।
~ ज़हरा निगाह
May 4, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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