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Tuesday, June 16, 2015

हम दोस्ती ऐहसान वफ़ा भूल गए हैं



हम दोस्ती ऐहसान वफ़ा भूल गए हैं
ज़िंदा तो हैं जीने की अदा भूल गए हैं

खुशबू जो लुटाते हैं मसलते हैं उसी को
ऐहसान का बदला ये मिलता है कली को
ऐहसान तो लेते हैं सिला भूल गए हैं

करते हैं मुहब्बत का और ऐहसान का सौदा
मतलब के लिए करते हैं ईमान का सौदा
डर मौत का और खौफ-ऐ-खुदा भूल गए हैं

अब मोम में ढलकर कोई पत्थर नहीं होता
अब कोई भी कुर्बान किसी पर नहीं होता
यूँ भटके हैं मंजिल का पता भूल गए हैं

~ पयाम सईदी


  Jun 16, 2015 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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