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Tuesday, June 23, 2015

नवाज़िश, करम, शुक्रिया मेहरबानी



नवाज़िश, करम, शुक्रिया मेहरबानी
मुझे बख़्श दी आपने ज़िन्दगानी !

*नवाज़िश=अनुकंपा; करम= कृपा

जवानी की जलती हुई दोपहर में
ये ज़ुल्फ़ों के साये घनेरे-घनेरे,
अजब धूप छाँव का आलम है तारी
महकता उजाला चमकते अँधेरे,
ज़मीं का फ़ज़ा हो गई आसमानी !

*तारी= संयोग

लबों की ये कलियाँ खिली-अधखिली सी
ये मख़मूर आँखें गुलाबी-गुलाबी,
बदन का ये कुंदन सुनहरा-सुनहरा
ये कद है कि छूटी हुई माहताबी,
हमेशा सलामत रहे या जवानी !

*मख़मूर=मादक

~ हिमायत अली शाएर


   Jun 23, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

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