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Saturday, June 20, 2015

कब तक करूँ मैं इंतजार ?



रात के पहरेदार की सीटी
साथ हवा के सैर को निकली
जागते रहना, जागते रहना
रास्तों से आवाजें गुजरीं
और हँस के मैं खुद से बोली
जन्मों से मैं जाग रही हूँ
इंतजार को साध रही हूँ
कोई तो आए, कोई तो बोले तू सो जा इक बार
इंतजार, इंतजार, बोलो कब तक करूँ मैं इंतजार ?

सुबह सुबह आँगन में अपने गीले ख़्वाब सुखाती हूँ
कानों में खुद डाल के उँगली ऊँचे सुर में गाती हूँ
शाख गुलमोहर की हसरत से कितनी बार हिलाती हूँ
कभी तो खुशबू से भर जाए ये दामन इक बार
इंतजार, इंतजार, बोलो कब तक करूँ मैं इंतजार ?

पहले थोड़ा जिया जलाया
फिर आँगन में दिया जलाया
नर्म घास पर चल कर देखा
इक बुलबुल को पास बुलाया
और उसने कानों में गाया
आएगा वो धूप का टुकड़ा, इक दिन मेरे द्वार
इंतजार, इंतजार, जिसका मुझे इंतजार…..

~ प्रसून जोशी

  Jun 20, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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