ज़रा सी रौशनी महदूद कर दो
अंधेरों को दिया खलता बहुत है
*महदूद=हद के भीतर
गिले मुझसे हैं उसको बात दीगर
मुझे उसने कहीं चाहा बहुत है
*दीगर=और
May 16, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
अंधेरों को दिया खलता बहुत है
*महदूद=हद के भीतर
गिले मुझसे हैं उसको बात दीगर
मुझे उसने कहीं चाहा बहुत है
*दीगर=और
वो मेरा दोस्त है ये सच है लेकिन
वो तारीफें मेरी करता बहुत है
ये चोटें ऊपरी दिखती हैं यूँ तो
वो अंदर तक कहीं टूटा बहुत है
~ मौनी गोपाल 'तपिश'
वो तारीफें मेरी करता बहुत है
ये चोटें ऊपरी दिखती हैं यूँ तो
वो अंदर तक कहीं टूटा बहुत है
~ मौनी गोपाल 'तपिश'
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