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Thursday, June 2, 2016

चलो ये तो सलीका है बुरे को मत बुरा





चलो ये तो सलीका है बुरे को मत बुरा कहिए
मगर उनकी तो ये ज़िद है हमें तो अब ख़ुदा कहिए

सलीकेमन्द लोगों पे यूँ ओछे वार करना भी
सरासर बदतमीज़ी है इसे मत हौसला कहिए

तुम्हारे दम पै जीते हम तो यारों कब के मर जाते
अगर ज़िंदा हैं क़िस्मत से बुजुर्गों की दुआ कहिए

हमारा नाम शामिल है वतन के जाँ-निसारों में
मगर यूँ तंग-नज़री से हमें मत बेवफ़ा कहिए
*जाँ-निसार=जान न्योछावर करना; तंग-नज़री=संकीर्ण-दृष्टि, ओछा पन

तुम्हीं पे नाज़ था हमको वतन के मो'तबर लोगों
चमन वीरान-सा क्यूँ है गुलों को क्या हुआ कहिए
*मो'तबर=प्रतिष्ठित

किसी की जान ले लेना तो इनका शौक है ‘आज़ाद’
जिसे तुम क़त्ल कहते हो उसे इनकी अदा कहिए

~ अज़ीज़ आज़ाद
 

May 20, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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