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Thursday, June 2, 2016

फूल रजनीगंधा के ऑंचल में



फूल रजनीगंधा के ऑंचल में भर कर लाई है
ये हवा सीधी तुम्हारे घर से ही तो आई है

मन को छुआ-सा किसी ने, सामने कोई न था
घर बैठे ही मिल गई है प्राण को जीवन-सुधा
द्वार पर आहट न कोई, ना कहीं परछाई है
ये हवा सीधी तुम्हारे घर से ही तो आई है

स्मृति के स्वस्तिक नैनों में अंकित हो गए
कोर में बैठे हुए ऑंसू समर्पित हो गए
धन्य कैसी भेंट दुर्लभ तुमने ये भिजवाई है
ये हवा सीधी तुम्हारे घर से ही तो लाई है

पा लिया है मीत मैंने गंध के वातावरण पर
सामने बैठे मिले तुम गीतिका के आवरण पर
पृष्ठभूमि पर सुमन की सूखी पंखुरी पाई है
ये हवा सीधी तुम्हारे घर से ही तो आई है

~ रमेश रमन


May 19, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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