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Thursday, June 2, 2016

चाहिये, अच्छों को जितना चाहिये




चाहिये, अच्छों को जितना चाहिये
ये अगर चाहें, तो फिर क्या चाहिये

सोहबत-ए-रिन्दां से वाजिब है हज़र
जा-ए-मय अपने को खेंचा चाहिये
*पीने वालों की संगत; वाजिब=सही; हज़र=दूर रहना; जा-ए-मय=शराबखाना ; खेंचा=दूर रखना

चाहने को तेरे क्या समझा था दिल
बारे अब इस से भी समझा चाहिये
*बारे=आखिर

चाक मत कर जैब बे-अय्याम-ए-गुल
कुछ उधर का भी इशारा चाहिये
*जैब=कमीज की गरदनी; बे-अय्याम-ए-गुल=बिना गुलाबों के मौसम के

दोस्ती का पर्दा है बेगानगी
मुंह छुपाना हम से छोड़ा चाहिये

दुश्मनी में मेरी खोया ग़ैर को
किस क़दर दुश्मन है, देखा चाहिये

अपनी, रुस्वाई में क्या चलती है सअई
यार ही हंगामाआरा चाहिये
*सअई=मर्ज़ी; हंगामा आरा=हल्ला-गुल्ला करने वाला

मुन्हसिर मरने पे हो जिस की उमीद
नाउमीदी उस की देखा चाहिये
*मुन्हसिर=निर्भर होना

ग़ाफ़िल इन महतलअ़तों के वास्ते
चाहने वाला भी अच्छा चाहिये
*ग़ाफ़िल=अंजान; महतलअ़तों=चाँद से चेहरे वालों

चाहते हैं ख़ूब-रुओं को, 'असद'
आप की सूरत तो देखा चाहिये
*ख़ूब-रुओं=सुंदर चेहरे वाले

~ मिर्ज़ा ग़ालिब

Jun 01, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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