उसी स्मृति-सौरभ में मृगमन मस्त रहे,
यही है हमारी अभिलाषा सुन लीजिये।
शीतल हृदय सदा होता रहे आँसुओं से,
छिपिये उसी में मत बाहर हो भीजिये।
Jun 02, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
यही है हमारी अभिलाषा सुन लीजिये।
शीतल हृदय सदा होता रहे आँसुओं से,
छिपिये उसी में मत बाहर हो भीजिये।
हो जो अवकाश तुम्हें ध्यान कभी आवे मेरा,
अहो प्राण-प्यारे तो, कठोरता न कीजिये।
क्रोध से, विषाद से, दया से, पूर्व प्रीति ही से
किसी भी बहाने से तो, याद किया कीजिये।
~ जयशंकर प्रसाद
अहो प्राण-प्यारे तो, कठोरता न कीजिये।
क्रोध से, विषाद से, दया से, पूर्व प्रीति ही से
किसी भी बहाने से तो, याद किया कीजिये।
~ जयशंकर प्रसाद
Jun 02, 2015|e-kavya.blogspot.com
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