सौ रंग है किस रंग से तस्वीर बनाऊँ
मेरे तो कई रूप हैं किस रूप में आऊँ
क्यूँ आ के हर इक शख़्स मेरे ज़ख़्म कुरेदे
क्यूँ मैं भी हर इक शख़्स को हाल अपना सुनाऊँ
क्यूँ लोग मुसिर हैं कि सुनें मेरी कहानी
ये हक़ मुझे हासिल है सुनाऊँ कि छुपाऊँ
*मुसिर=बार बार एक ही काम करने के लिये कहने वाला
इस बज़्म में अपना तो शनासा नहीं कोई
क्या कर्ब है तन्हाई का मैं किस को बताऊँ
*बज़्म=महफिल; शनासा=जान-पहचान; कर्ब=बेचैनी
कुछ और तो हासिल न हुआ ख़्वाबों से मुझ को
बस ये है कि यादों के दर-ओ-बाम सजाऊँ
*दर-ओ-बाम=दरवाज़े और छत
बे-क़ीमत व बे-माया इसी ख़ाक में यारों
वो ख़ाक भी होगी जिसे आँखों से लगाऊँ
*बे-माया =बेसहारा, ग़रीब
किरनों की रिफ़ाक़त कभी आए जो मयस्सर
हम-राह मैं उन के तेरी दहलीज़ पे आऊँ
*रिफ़ाक़त=साथ, दोस्ती; मयस्सर=उपलब्ध
ख़्वाबों के उफ़ुक़ पर तिरा चेहरा हो हमेशा
और मैं उसी चेहरे से नए ख़्वाब सजाऊँ
*उफ़ुक़=आकाश का घेरा
रह जाएँ किसी तौर मेरे ख़्वाब सलामत
उस एक दुआ के लिए अब हाथ उठाऊँ
~ अतहर नफ़ीस
May 23, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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