आँसुओं तुम भी पराई
आँख में रहने लगे हो
अब तुम्हें मेरे नयन
इतने बुरे लगने लगे हैं।
बेवफाई और मेरे सामने ही
यह कहाँ की दोस्ती है?
ज़िंदगी ताने सुनाती है कभी
मुझको जवानी कोसती है।
कंटको तुम भी विरोधी
पाँव में रहने लगे हो
अब तुम्हें मेरे चरण
इतने बुरे लगने लगे हैं।
साथ बचपन से रहे थे हम सदा
साथ ही दोनों पढ़े थे
घाटियों में साथ घूमे और हम
साथ पर्वत पर चढ़े थे।
दर्द तुम भी दूसरों के
काव्य में रहने लगे हो
अब तुम्हें मेरे भजन
इतने बुरे लगने लगे हैं।
~ रामावतार त्यागी
Feb 7, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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