Disable Copy Text

Sunday, February 19, 2017

रंजिश ही सही दिल ही

Image may contain: 1 person, closeup

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ
*पिंदार=गर्व

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ
*मरासिम=रिश्ते; रस्म-ओ-रह=तौर तरीक़े

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ

इक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिर्या से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जाँ मुझ को रुलाने के लिए आ
*लज़्ज़त-ए-गिर्या=रो लेने का सुख

अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ

~ अहमद फ़राज़


  Feb 14, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment