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Sunday, February 26, 2017

वो काम भला क्या काम हुआ


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वो काम भला क्या काम हुआ
जिस काम का बोझा सर पे हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जिस इश्क़ का चर्चा घर पे हो…

वो काम भला क्या काम हुआ
जो मटर सरीखा हल्का हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जिसमें ना दूर तहलका हो…

वो काम भला क्या काम हुआ
जिसमें ना जान रगड़ती हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जिसमें ना बात बिगड़ती हो…

वो काम भला क्या काम हुआ
जिसमें साला दिल रो जाए
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जो आसानी से हो जाए…

वो काम भला क्या काम हुआ
जो मज़ा नहीं दे व्हिस्की का
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जिसमें ना मौक़ा सिसकी का…

वो काम भला क्या काम हुआ
जिसकी ना शक्ल इबादत हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जिसकी दरकार इजाज़त हो…

वो काम भला क्या काम हुआ
जो नहीं अकेले दम पे हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जो ख़त्म एक चुम्बन पे हो

वो काम भला क्या काम हुआ
कि मज़दूरी का धोखा हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जो मजबूरी का मौक़ा हो…

वो काम भला क्या काम हुआ
जिसमें ना ठसक सिकंदर की
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जिसमें ना ठरक हो अंदर की…

वो काम भला क्या काम हुआ
जो कड़वी घूंट सरीखा हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जिसमें सब कुछ ही मीठा हो…

वो काम भला क्या काम हुआ
जो लब की मुस्कां खोता हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जो सबकी सुन के होता हो…

वो काम भला क्या काम हुआ
जिसमें ना ढेर पसीना हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जो ना भीगा ना झीना हो…

वो काम भला क्या काम हुआ
जिसमें ना लहू महकता हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ
जो इक चुम्बन में थकता हो…

वो काम भला क्या काम हुआ
जिसमे चीखों की आशा हो
वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ जो
मज़हब , रंग और भाषा हो

~ पीयूष मिश्र


  Feb 25, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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