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Saturday, February 4, 2017

आकाश छोटा हो गया है।



भूमि के विस्तार में बेशक कमी आई नहीं है
आदमी का आजकल आकाश छोटा हो गया है।

हो गए सम्बन्ध सीमित डाक से आए ख़तों तक
और सीमाएं सिकुड़ कर आ गईं घर की छतों तक
प्यार करने का तरीका तो वही युग–युग पुराना
आज लेकिन व्यक्ति का विश्वास छोटा हो गया है।

आदमी की शोर से आवाज़ नापी जा रही है
घंटियों से वक़्त की परवाज़ नापी जा रही है
देश के भूगोल में कोई बदल आया नहीं है
हाँ हृदय का आजकल इतिहास छोटा हो गया है।

यह मुझे समझा दिया है उस महाजन की बही ने
साल में होते नहीं हैं आजकल बारह महीने
और ऋतुओं के समय में बाल भर अंतर न आया
पर न जाने किस तरह मधुमास छोटा हो गया है।

भूमि के विस्तार में बेशक कमी आई नहीं है
आदमी का आजकल आकाश छोटा हो गया है।

~ राम अवतार त्यागी


  Feb 4, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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