दुख दर्द में हमेशा निकाले तुम्हारे ख़त
और मिल गई ख़ुशी तो उछाले तुम्हारे ख़त
सब चूड़ियाँ तुम्हारी समुंदर को सौंप दीं
और कर दिए हवा के हवाले तुम्हारे ख़त
मेरे लहू में गूँज रहा है हर एक लफ़्ज़
मैं ने रगों के दश्त में पाले तुम्हारे ख़त
*दश्त=जंगल
यूँ तो हैं बे-शुमार वफ़ा की निशानियाँ
लेकिन हर ऐक शय से निराले तुम्हारे ख़त
जैसे हो उम्र भर का असासा ग़रीब का
कुछ इस तरह से मैं ने सँभाले तुम्हारे ख़त
*असासा=धनदौलत
अहल-ए-हुनर को मुझ पे 'वसी' ए'तिराज़ है
मैं ने जो अपने शेर में ढाले तुम्हारे ख़त
*अहल-ए-हुनर=कलाकार
परवा मुझे नहीं है किसी चाँद की 'वसी'
ज़ुल्मत के दश्त में हैं उजाले तुम्हारे ख़त
*ज़ुल्मत=अंधेरापन
~ वसी शाह
Feb 20, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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