Disable Copy Text

Sunday, February 26, 2017

कैसी है तुम्हारी हँसी?

Image may contain: 1 person, smiling, closeup

कैसी है तुम्हारी हँसी?
ऊंचाई से गिरती जलधारा सी
कल कल छल छल करती

मैं चकित सी देखती रह गई
सारी नीरवता सारा विषाद
तुम्हारी हंसी की धारा में बह गए
तुम्हारी हंसी है सावन की फुहार
भीगे मन प्राण
नीरस मरुथल से मन पर
जैसे बहार की हरियाली

तुम्हारी हंसी है मावस के बाद की
दूधिया चांदनी
या फिर सूखे में
अचानक फूट पड़ने वाला
मीठे पानी का झरना
उदास मन में जैसे
प्रेम का मीठा अहसास

भटकते मन को मिले जैसे
एक प्यारी पगडंडी
जलती दुपहरिया में
अचानक चले जैसे
ठंडी ठंडी मधुर बयार
शून्य विजन में जैसे
कूक पड़ी हो कोयल
सावन का पहला मेघखंड हो जैसे
एैसी ही तो है तुम्हारी हंसी

कैसे बचा पाए तुम?
इस निर्मम संसार में
अपनी यह हंसी?

∼ कुसुम सिन्हा


  Feb 26, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment