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Friday, November 17, 2017

यार को मैं ने मुझे यार ने


यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया
रात भर ताला'-ए-बेदार ने सोने न दिया
*ताला'-ए-बेदार=जागा हुआ नसीब

ख़ाक पर संग-ए-दर-ए-यार ने सोने न दिया
धूप में साया-ए-दीवार ने सोने न दिया
*संग-ए-दर-ए-यार=यार की दहलीज़ का पत्थर;

शाम से वस्ल की शब आँख न झपकी ता-सुब्ह
शादी-ए-दौलत-ए-दीदार ने सोने न दिया
*शादी-ए-दौलत-ए-दीदार=तेखने की खुशी की दौलत

एक शब बुलबुल-ए-बेताब के जागे न नसीब
पहलु-ए-गुल में कभी ख़ार ने सोने न दिया

जब लगी आँख कराहा ये कि बद-ख़्वाब किया
नींद भर कर दिल-ए-बीमार ने सोने न दिया

दर्द-ए-सर शाम से उस ज़ुल्फ़ के सौदे में रहा
सुब्ह तक मुझ को शब-ए-तार ने सोने न दिया
*शब-ए-तार=काली रात

रात भर कीं दिल-ए-बेताब ने बातें मुझ से
रंज ओ मेहनत के गिरफ़्तार ने सोने न दिया

सैल-ए-गिर्या से मिरी नींद उड़ी मर्दुम की
फ़िक्र-ए-बाम-ओ-दर-ओ-दीवार ने सोने न दिया
*सैल-ए-गिर्या=रोने से आयी बाढ़; मर्दुम=लोग

बाग़-ए-आलम में रहीं ख़्वाब की मुश्ताक़ आँखें
गर्मी-ए-आतिश-ए-गुलज़ार ने सोने न दिया
*बाग़-ए-आलम=दुनिया के बग़ीचे; मुश्ताक़=इच्छुक; गर्मी-ए-आतिश-ए-गुलज़ार=बाग़ीचे के आग की गर्मी

सच है ग़म-ख़्वारी-ए-बीमार अज़ाब-ए-जाँ है
ता-दम-ए-मर्ग दिल-ए-ज़ार ने सोने न दिया
*ग़म-ख़्वारी-ए-बीमार=बीमार से हमदर्दी; अज़ाब-ए-जाँ=कष्ट; ता-दम-ए-मर्ग=आख़िरी समय तक

तकिया तक पहलू में उस गुल ने न रक्खा 'आतिश'
ग़ैर को साथ कभी यार ने सोने न दिया

~ हैदर अली आतिश

  Nov 17, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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