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Saturday, November 18, 2017

जनम के सिरजे हुए दुख

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जनम के सिरजे हुए दुख
उम्र बन-बनकर कटेंगे
ज़िन्दगी के दिन घटेंगे

कुआँ अँधा बिना पानी
घूमती यादें पुरानी
प्यास का होना वसंती
तितलियों से छेड़खानी
झरे फूलों से पहाड़े
गंध के कब तक रटेंगे?
ज़िन्दगी के दिन घटेंगे

चढ़ गये सारे नसेड़ी
वक़्त की मीनार टेढ़ी
'गिर रही है- गिर रही है'
हवाओं ने तान छेड़ी
मचेगी भगदड़ कि कितने स्वप्न
लाशों से पटेंगे
ज़िन्दगी के दिन घटेंगे

परिंदे फिर चमन में
खेत बागों में कि वन में
चहचहायेंगे
नदी बहती रहेगी उसी धुन में
चप्पुओं के स्वर लहर बनकर
कछारों तक उठेंगे
ज़िन्दगी के दिन घटेंगे

~ दिनेश सिंह


  Nov 18, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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