बना हूँ मैं आज तेरा मेहमाँ कोई अदू को ख़बर न कर दे
उठा के वो तेरी अंजुमन से कहीं मुझे दर-ब-दर न कर दे
*अदू=दुश्मन
ये वस्ल की रात है ख़ुदारा नक़ाब चेहरे से मत हटाओ
तुम्हारे चेहरे का ये उजाला सहर से पहले सहर न कर दे
*ख़ुदारा=ईश्वर के लिये; सहर=सवेरा
क़सम जिसे ज़ब्त-ए-ग़म की दे कर उठा दिया अपने दर से तू ने
कहीं वो दीवाना उम्र अपनी बग़ैर तेरे बसर न कर दे
*ज़ब्त-ए-ग़म=सहनशीलता
बड़े मज़े से मैं पी रहा हूँ मिरी तरफ़ तुम अभी न देखो
मुझे ये डर है नज़र तुम्हारी शराब को बे-असर न कर दे
सताया जिस को हमेशा तू ने सदा अकेला जो छुप के रोया
वो दिल-जला अपने आँसुओं से तुम्हारा दामन भी तर न कर दे
'क़तील' ये वस्ल के ज़माने हसीन भी हैं तवील भी हैं
मगर लगा है ये, दिल को धड़का इन्हें कोई मुख़्तसर न कर दे
*तवील=लम्बे; मुख्तसर=संक्षिप्त
~ क़तील शिफ़ाई
Nov 11, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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