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Friday, September 28, 2018

नहीं मैं यूँ नहीं कहता

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नहीं मैं यूँ नहीं कहता
कि ये दुनिया जहन्नम और हम सब इस का ईंधन हैं,
नहीं यूँ भी नहीं कहता
कि हम जन्नत के बासी हैं -
सरों पर ला-जवर्दी (नीले रंग के) शामियाने और पैरों में
निराले ज़ाएक़ों (स्वाद) वाले फलों के पेड़ शीर (दूध) ओ शहद की नहरें मचलती हैं
मुझे तो बस यही कुछ आम सी कुछ छोटी छोटी बातें कहनी हैं
मुझे कहना है
इस धरती पे गुलशन भी हैं सहरा (वीराना) भी
महकती नर्म मिट्टी भी
और उस की कोख में ख़्वाबों का जादू आने वाली नित नई फ़सलों की ख़ुशबू भी
चटख़ती और तपती सख़्त बे-हिस (संवेदन रहित) ख़ून की प्यासी चटानें भी
मुझे कहना है
हम सब अपनी धरती की
बुराई और भलाई सख़्तियों और नरमियों अच्छाइयों कोताहियों (कमियों) हर रंग
हर पहलू के मज़हर (अभिव्यक्ति)हैं
हमें इंसान की मानिंद
ख़ैर ओ शर (कुशल-मंगल व बुराई) मोहब्बत और नफ़रत दुश्मनी और दोस्ती के साथ जीना है
इसी धरती का शहद ओ सम (ज़हर)
इसी धरती के खट-मिठ जाने पहचाने मज़े का जाम पीना है
मुझे बस इतना कहना है
कि हम को आसमानों या ख़लाओं (शून्य या आसमानी) की कोई मख़्लूक़ (जीव) मत समझो

*ला-जवर्दी=नीले रंग का कीमती पत्थर

~ बशर नवाज़

  Sep 28, 2018 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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