कलम अपनी साध
और मन की बात बिल्कुल ठीक कह एकाध।
यह कि तेरी भर न हो तो कह
और बहते बने सादे ढंग से तो बह
जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख
और इसके बाद भी हमसे बड़ा तू दिख
चीज ऐसी दे कि जिसका स्वाद सिर चढ़ जाए
बीज ऐसा बो कि जिसकी बेल बन बढ़ जाए
फल लगें ऐसे कि सुख-रस सार और समर्थ
प्राण संचारी की शोभा भर न जिनका अर्थ।
टेढ़ मत पैदा कर गति तीर की अपना
पाप को कर लक्ष्य कर दे झूठ को सपना
विंध्य रेवा फूल फल बरसात और गरमी
प्यार प्रिय का कष्ट कारा क्रोध या नरमी
देश हो या विदेश मेरा हो कि तेरा हो
हो विशद विस्तार चाहे एक घेरा हो
तू जिसे छू दे दिशा कल्याण हो उसकी
तू जिसे गा दे सदा वरदान हो उसकी।
~ भवानी प्रसाद मिश्र
May 18, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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