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Tuesday, May 12, 2020

सुनो हम दरख़्तों से

 
सुनो हम दरख़्तों से फल तोड़ते वक़्त
उन के लिए मातमी धुन बजाते नहीं
सुनो प्यार के क़हक़हों
और बोसों के मासूम लम्हों में हम
आँसुओं के दियों को जलाते नहीं
और तुम लम्स बोसों
सुलगती हुई गर्म साँसों में
आँसू मिलाने पे क्यूँ तुल गई हो

सुनो आँसुओं का मुक़द्दर
तुम्हारा मुक़द्दर नहीं
तुम अभी मौसमों से परे
अपनी रूदाद के सिलसिलों से परे
दूर तक जाओगी
कामराँ जाओगी
तुम न जाने कहाँ मेरी पर्वाज़ से
मेरी रफ़्तार से मेरी हर बात से
और भी दूर तक जाओगी
मैं कहीं राह में ख़ाक हो जाऊँगा
आँसुओं को बचा कर रखो
उन का भी एक समय आएगा

*लम्स=स्पर्श; रूदाद=कहानी; पर्वाज़=उड़ान; कामराँ=कामयाब

~ फ़ज़्ल ताबिश


May 12, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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