जिन के होंटों पे हँसी पाँव में छाले होंगे
हाँ वही लोग तुम्हें चाहने वाले होंगे
मय बरसती है फ़ज़ाओं पे नशा तारी है
मेरे साक़ी ने कहीं जाम उछाले होंगे
*तारी=छाया हुआ
शम्अ वो लाए हैं हम जल्वा-गाह-ए-जानाँ से
अब दो-आलम में उजाले ही उजाले होंगे
*जल्वा-गाह-ए-जानाँ=जहाँ प्रेयसी के दर्शन हुए हों; दो-आलम=जगत
उन से मफ़्हूम-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त अदा हो शायद
अश्क जो दामन-ए-मिज़्गाँ ने सँभाले होंगे
*मफ़्हूम=अर्थ; ग़म-ए-ज़ीस्त=जीवन के दुख; दामन-ए-मिज़्गाँ= आँख की पुतलियों का नुकीला किनारा
हम बड़े नाज़ से आए थे तिरी महफ़िल में
क्या ख़बर थी लब-ए-इज़हार पे ताले होंगे
*लब-ए-इज़हार=बोलने वाले होंठ
~ परवाज़ जालंधरी
May 8, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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