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Monday, May 25, 2020

अब तो घबरा के ये कहते हैं

































अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएँगे

तुम ने ठहराई अगर ग़ैर के घर जाने की
तो इरादे यहाँ कुछ और ठहर जाएँगे

ख़ाली ऐ चारागरो होंगे बहुत मरहम-दाँ
पर मिरे ज़ख़्म नहीं ऐसे कि भर जाएँगे
*चारागरों=उपचारक; मरहम-दाँ=मरहम की शीशी

पहुँचेंगे रहगुज़र-ए-यार तलक क्यूँ कर हम
पहले जब तक न दो आलम से गुज़र जाएँगे
*रहगुज़र-ए-यार=प्रेमिका की गली; आलम=संसार, हाल

शोला-ए-आह को बिजली की तरह चमकाऊँ
पर मुझे डर है कि वो देख के डर जाएँगे
*शोला-ए-आह=आह की आग

हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जाएँगे

आग दोज़ख़ की भी हो जाएगी पानी पानी
जब ये आसी अरक़-ए-शर्म से तर जाएँगे
*दोज़ख़=नर्क; अरक़-ए-शर्म=शर्म के पसीने

नहीं पाएगा निशाँ कोई हमारा हरगिज़
हम जहाँ से रविश-ए-तीर-ए-नज़र जाएँगे
*रविश-ए-तीर-ए-नज़र=नज़र के तीर की राह

सामने चश्म-ए-गुहर-बार के कह दो दरिया
चढ़ के गर आए तो नज़रों से उतर जाएँगे
*चश्म-ए-गुहर-बार=आँसी से भरी आँखें

लाए जो मस्त हैं तुर्बत पे गुलाबी आँखें
और अगर कुछ नहीं दो फूल तो धर जाएँगे
*तुर्बत=क़ब्र

रुख़-ए-रौशन से नक़ाब अपने उलट देखो तुम
मेहर-ओ-माह नज़रों से यारों की उतर जाएँगे
मेहर-ओ-माह=सूरज और चाँद

हम भी देखेंगे कोई अहल-ए-नज़र है कि नहीं
याँ से जब हम रविश-ए-तीर-ए-नज़र जाएँगे
*अहल-ए-नज़र=लोगों की निग़ाह

'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
उन को मय-ख़ाने में ले आओ सँवर जाएँगे
*मदरसे=मुस्लिम धर्म स्कूल

~ शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

May 25, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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