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Friday, December 18, 2020

आँसू मिरी आँखों से टपक जाए


आँसू मिरी आँखों से टपक जाए तो क्या हो
तूफ़ाँ कोई फिर आ के धमक जाए तो क्या हो

बस इस लिए रहबर पे नहीं मुझ को भरोसा
बुद्धू है वो ख़ुद राह भटक जाए तो क्या हो
*रहबर-राह दिखाने वाला

अच्छी ये तसव्वुर की नहीं दस्त-दराज़ी
अंगिया कहीं इस बुत की मसक जाए तो क्या हो
*तसव्वुर=ख़याल; दस्त-दराज़ी=हाथ बढ़ाना

वाइज़ ये गुलिस्ताँ ये बहारें ये घटाएँ
साग़र कोई ऐसे में खनक जाए तो क्या हो
*वाइज़=उपदेश देने वाला

ये चाह-कनी मेरे लिए बानी-ए-बेदाद
तू ख़ुद इसी कोइयाँ में लुढ़क जाए तो क्या हो
*चाह-कनी=कुँआ खोदना; बानी-ए-बेदाद=ज़ुल्म शुरू करने वाला

ग़ुर्बत से मिरी सुब्ह ओ मसा खेलने वाले
तेरा भी दिवाला जो खिसक जाए तो क्या हो
*ग़ुर्बत= गरीबी; मसा=शाम

ये बार-ए-अमानत तू उठाता तो है लेकिन
नाज़ुक है कमर तेरी लचक जाए तो क्या हो
*बार-ए-अमानत=धरोहर की ज़िम्मेदारी

रुक रुक के ज़रा हाथ बढ़ा ख़्वान-ए-करम पर
लुक़्मा कोई जल्दी में अटक जाए तो क्या हो
*ख़्वान-ए-करम=ईनाम; लुक़्मा=निवाला

मैं क़ैद हूँ पर आह-ए-रसा क़ैद नहीं है
वो जेल की दीवार तड़क जाए तो क्या हो
*आह-ए-रसा=गंतव्य पर पहुँचने का भाव

ऐ साक़ी-ए-गुलफ़ाम ज़रा सोच ले ये भी
कुल्हड़ तिरी हस्ती का छलक जाए तो क्या हो
*साक़ी-ए-गुलफ़ाम=फूलों के रंग की मदिरा प्रदान करने वाली

जल्लाद से ऐ 'शौक़' मैं ये पूछ रहा हूँ
तू भी यूँ ही फाँसी पे लटक जाए तो क्या हो

~ शौक़ बहराइची

Dec 18, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

 

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