Disable Copy Text

Friday, December 11, 2020

ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल

 

ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तिरे दीवाने का
एक गोशा है ये दुनिया इसी वीराने का
*ख़ल्क़=लोग; गोशा=कोना

इक मुअ'म्मा है समझने का न समझाने का
ज़िंदगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का
*मुअ'म्मा=पहेली

हुस्न है ज़ात मिरी इश्क़ सिफ़त है मेरी
हूँ तो मैं शम्अ मगर भेस है परवाने का
*ज़ात=अस्तित्व; सिफ़त=ख़ूबी

का'बे को दिल की ज़ियारत के लिए जाता हूँ
आस्ताना है हरम मेरे सनम-ख़ाने का
*ज़ियारत=तीर्थ यात्रा; आस्ताना=दहलीज़; सनम-ख़ाना=मंदिर

ज़िंदगी भी तो पशेमाँ है यहाँ ला के मुझे
ढूँडती है कोई हीला मिरे मर जाने का
*पशेमाँ=शर्मिंदा; हीला=तरक़ीब

तुम ने देखा है कभी घर को बदलते हुए रंग
आओ देखो न तमाशा मिरे ग़म-ख़ाने का

हम ने छानी हैं बहुत दैर ओ हरम की गलियाँ
कहीं पाया न ठिकाना तिरे दीवाने का
*दैर - ओ हरम=मंदिर मस्जिद

किस की आँखें दम-ए-आख़िर मुझे याद आई हैं
दिल मुरक़्क़ा' है छलकते हुए पैमाने का
*मुरक़्क़ा=अल्बम

कहते हैं क्या ही मज़े का है फ़साना 'फ़ानी'
आप की जान से दूर आप के मर जाने का

हर नफ़स उम्र-ए-गुज़िश्ता की है मय्यत 'फ़ानी'
ज़िंदगी नाम है मर मर के जिए जाने का
*नफ़स=आत्मा; उम्र-ए-गुज़िश्ता=गुज़रे जीवन की; मय्यत=शवयात्रा

~ फ़ानी बदायूनी

Dec 11, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

No comments:

Post a Comment