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Wednesday, December 23, 2020

सरकती जाए है रुख़ से


सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
निकलता आ रहा है आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता

जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा
हया यक-लख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता
*हया=शर्म; यक-लख़्त=अचानक

शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तो अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता
*शब-ए-फ़ुर्क़त=विरह की रात

सवाल-ए-वस्ल पर उन को अदू का ख़ौफ़ है इतना
दबे होंटों से देते हैं जवाब आहिस्ता आहिस्ता
*सवाल-ए-वस्ल=मिलन का प्रश्न

वो बेदर्दी से सर काटें 'अमीर' और मैं कहूँ उन से
हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता जनाब आहिस्ता आहिस्ता

~ अमीर मीनाई

Dec 23, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

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