उनसे प्रीत करूँ, पछताऊँ!
सोन महल लोहे का पहरा,
चारों ओर समुन्दर गहरा,
पन्थ हेरते धीरज हारूँ
उन तक पहुँच न पाऊँ।
प्रीत करूँ, पछताऊँ!
इन्द्र धनुष सपने सतरंगी
छलिया पाहुन छिन के संगी,
नेह लगे की पीर पुतरियन
जागूँ, चैन गवाऊँ।
प्रीत करूँ, पछताऊँ!
दिपे चनरमा नभ दर्पन में
छाया तैरे पारद मन में,
पास न मानूँ, दूर न जानूँ
कैसे अंक जुड़ाऊँ?
प्रीत करूँ, पछताऊँ!
उनसे प्रीत करूँ, पछताऊँ!
~ रवीन्द्र भ्रमर
Dec 24, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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