तिरी तिरछी नज़र का तीर है मुश्किल से निकलेगा
दिल उस के साथ निकलेगा अगर ये दिल से निकलेगा
शब-ए-ग़म में भी मेरी सख़्त-जानी को न मौत आई
तिरा काम ऐ अजल अब ख़ंजर-ए-क़ातिल से निकलेगा
*सख़्त-जानी=कर्मठ जान
निगाह-ए-शौक़ मेरा मुद्दआ तू उन को समझा दे
मिरे मुँह से तो हर्फ़-ए-आरज़ू मुश्किल से निकलेगा
*निगाह-ए-शौक़=देखने की तमन्ना;
कहाँ तक कुछ न कहिए अब तो नौबत जान तक पहुँची
तकल्लुफ़-बर-तरफ़ ऐ ज़ब्त नाला दिल से निकलेगा
*तकल्लुफ़-बर-तरफ़=औपचारिकता, एक तरफ; ज़ब्त=संयम; नाला=पुकार;
तसव्वुर क्या तिरा आया क़यामत आ गई दिल में
कि अब हर वलवला बाहर मज़ार-ए-दिल से निकलेगा
*तसव्वुर=कल्पना; वलवला=आवेश
न आएँगे वो तब भी दिल निकल ही जाएगा 'फ़ानी'
मगर मुश्किल से निकलेगा बड़ी मुश्किल से निकलेगा
~ फ़ानी बदायुनी
Dec 20, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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