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कल्पना के घन बरसते गीत गीले हो रहे
भाव रिमझिम कर रहे हैं स्वर रसीले हो रहे
नाचतीं श्यामल घटाएँ थिरकती बरसात है
इक कहानी बनके आई ये सुहानी रात है
झूमता फिरता पवन, झोंके नशीले हो रहे
कल्पना के घन बरसते गीत गीले हो रहे
किस प्रणय की आग में जल गीत गाता है पवन
मांग भरता है दुल्हन की मोतियों से ये गगन
झुक रहे तेरे नयन कितने, न हीले हो रहे
कल्पना के घन बरसते गीत गीले हो रहे
~ भरत व्यास
May 3, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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