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Wednesday, May 11, 2016

कल्पना के घन बरसते



कल्पना के घन बरसते गीत गीले हो रहे
भाव रिमझिम कर रहे हैं स्वर रसीले हो रहे

नाचतीं श्यामल घटाएँ थिरकती बरसात है
इक कहानी बनके आई ये सुहानी रात है
झूमता फिरता पवन, झोंके नशीले हो रहे
कल्पना के घन बरसते गीत गीले हो रहे

किस प्रणय की आग में जल गीत गाता है पवन
मांग भरता है दुल्हन की मोतियों से ये गगन
झुक रहे तेरे नयन कितने, न हीले हो रहे
कल्पना के घन बरसते गीत गीले हो रहे

~ भरत व्यास


  May 3, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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