Disable Copy Text

Sunday, May 15, 2016

ख़ूब हँस लो मेरी आवारा-मिज़ाजी पर



ख़ूब हँस लो मेरी आवारा-मिज़ाजी पर तुम
मैं ने बरसों यूँ ही खाए हैं मोहब्बत के फ़रेब
अब न एहसास-ए-तक़द्दुस न रिवायत की फ़िक्र
अब उजालों में खाऊँगी मैं ज़ुल्मत के फ़रेब

*आवारा-मिज़ाजी=घुमक्कड़ प्रवत्ति; एहसास-ए-तक़द्दुस=पवित्र भाव; रिवायत=अनुभव या तथ्य की बात

ख़ूब हँस लो की मेरे हाल पे सब हँसते हैं
मेरी आँखों से किसी ने भी न आँसू पोंछे
मुझ को हमदर्द निगाहों की ज़रूरत भी नहीं
और शोलों को बढ़ाते हैं हवा के झोंके

ख़ूब हँस लो की तकल्लुफ़ से बहुत दूर हूँ मैं
मैं ने मसनूई तबस्सुम का भी देखा अंजाम
मुझ से क्यूँ दूर रहो आओ मैं आवारा हूँ
अपने हाथों से पिलाओ तो मय-ए-तल्ख़ का जाम

*तकल्लुफ़=प्रचलित नियम; मसनूई=कृत्रिम; तबस्सुम=मुस्कान;मय-ए-तल्ख़=कड़वी शराब

ख़ूब हँस लो कि यही वक़्त गुज़र जाएगा
कल न वारफ़्तगी-ए-शौक़ से देखेगा कोई
इतनी मासूम लताफ़त से ने खेलेगा कोई

*वारफ़्तगी-ए-शौक़=चाहत में खो कर; लताफ़त=माधुर्य

ख़ूब हँस लो की यही लम्हे ग़नीमत हैं अभी
मेरी ही तरह तुम भी तो हो आवारा-मिज़ाज
कितनी बाँहों ने तुम्हें शौक़ से जकड़ा होगा
कितने जलते हुए होंटो ने लिया होगा ख़िराज

* ग़नीमत=सन्तोष की बात; ख़िराज=सम्मान, टैक्स

ख़ूब हँस लो तुम्हें बीते हुए लम्हों की क़सम
मेरी बहकी हुई बातों का बुरा मत मानो
मेरे एहसास को तहज़ीब कुचल देती है
तुम भी तहज़ीब के मलबूस उतारो फेंको

*मलबूस=पहनावा

ख़ूब हँस लो की मेरे लम्हे गुरेज़ाँ हैं अब
मेरी रग रग में अभी मस्ती-ए-सहबा भर दो
मैं भी तहज़ीब से बेज़ार हूँ तुम भी बेज़ार
और इस नग्न को बरहना कर लो

*लम्हे गुरेज़ाँ=भागते पल; मस्ती-ए-सहबा=मय का नशा; तहज़ीब=सभ्यता; बेज़ार=ऊब जाना; नग्न=नग्न शरीर; बरहना=नग्न

~ अख़्तर पयामी


  May 14, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment