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भोले थे कर दिया भाला किसी ने
लो मशालों को जगा डाला किसी ने
है शहर ये कोयलों का, ये मगर न भूल जाना
लाल शोले भी इसी बस्ती में रहते हैं युगों से
रास्तो में धूल है ..कीचड़ है, पर ये याद रखना
ये जमीं धुलती रही संकल्प वाले आँसुओं से
मेरे आँगन को है धो डाला किसी ने
लो मशालों को जगा डाला किसी ने
भोले थे कर दिया भाला किसी ने
लो मशालों को जगा डाला किसी ने
आग बेवजह कभी घर से निकलती ही नहीं है,
टोलियाँ जत्थे बनाकर चींखकर यूँ चलती नहीं है..
रात को भी देखने दो, आज तुम सूरज के जलवे
जब तपेगी ईंट तभी होश में आएँगे तलवे
तोड़ डाला मौन का ताला किसी ने,
लो मशालों को जगा डाला किसी ने,
भोले थे अब कर दिया भाला किसी ने
लो मशालों को जगा डाला किसी ने
~ प्रसून जोशी
May 11, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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