क्यूँ बांधते हो
अपने को,
अपनों को।
बंधन के तीन कारण
भाव, स्वभाव और अभाव
और दो विकल्प है ,
मन और जिस्म।
मन की गति अद्भुत है.…
जब अपना न बन्ध सका ,
तो पराये पर जोर कैसा
बंधना - बांधना छोड़ो---दृष्टा बनो !
क्या कहा,
बांधोगे जिस्म को....,
अरे उसकी गति तो
मन से भी द्रुत है,
फ़ना हो जायेगा
और पता भी नहीं चलेगा।
May 13, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
अपने को,
अपनों को।
बंधन के तीन कारण
भाव, स्वभाव और अभाव
और दो विकल्प है ,
मन और जिस्म।
मन की गति अद्भुत है.…
जब अपना न बन्ध सका ,
तो पराये पर जोर कैसा
बंधना - बांधना छोड़ो---दृष्टा बनो !
क्या कहा,
बांधोगे जिस्म को....,
अरे उसकी गति तो
मन से भी द्रुत है,
फ़ना हो जायेगा
और पता भी नहीं चलेगा।
~ विनय जोशी
May 13, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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