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Thursday, May 12, 2016

मैं ने सोचा था कि इस बार...




जगजीत सिंह की गायी हुयी नज़्म 'बात निकलेगी तो फिर दूर तलक....' के शायर।

मैं ने सोचा था कि इस बार तुम्हारी बाहें
मेरी गर्दन में ब-सद-शौक़ हमाइल होंगी
मुश्किलें राह-ए-मोहब्बत में न हाइल होंगी
*ब-सद-शौक़=प्रेम से सराबोर; हमाइल=गले से लटकी; हाइल=नियंत्रण

मैं ने सोचा था कि इस बार निगाहों के सलाम
आयेंगे और ब-अंदाज़-ए-दिगर आयेंगे
फूल ही फूल फ़ज़ाओं में बिखर जायेंगे
*ब-अंदाज़-ए-दिगर=एक अलग अंदाज़ में

मैं ने सोचा था कि इस बार तुम्हारी सांसें
मेरी बहकी हुयी साँसों से लिपट जायेंगीं
बज़्म-ए-अहसास की तारीकियाँ छट जायेंगी
*बज़्म-ए-अहसास=अहसासों की महफिल; तारीकियाँ=अंधेरापन

मैं ने सोचा था कि इस बार तुम्हार पैकर
मेरे बे-ख़्वाब दरीचों को सुला जायेगा
मेरे कमरे को सलीक़े से सज़ा जायेगा
*पैकर=आकार; दरीचों==खिड़कियां

मैं ने सोचा था कि इस बार मिरे आँगन में
रंग बिखरेंगे, उम्मीदों की धनक टूटेगी
मेरी तन्हाई के आरिज़ पे शफ़क़ फूटेगी
*धनक=इंद्रधनुष; आरिज़=गाल; शफ़क़=क्षितिज (शाम की लालीपन)

मैं ने सोचा था कि इस बार ब-ईं सूरत-ए-हाल
मेरे दरवाज़े पे शहनाइयाँ सब देखेंगे
जो कभी पहले नहीं देखा था अब देखेंगे
*ब-ईं=इसके साथ; सूरत-ए-हाल=मौज़ूदा हालात

मैं ने सोचा था कि इस बार मोहब्बत के लिये
गुनगुनाते हुये जज़्बों की बरात आयेगी
मुद्दतों ब'अद तमन्नाओं की रात आयेगी
*जज़्बों=भावनाओं

तुम मिरे इश्क़ की तक़दीर बनोगी इस बार
जीत जायेगा मिरा जोश-ए-जुनूँ सोचा था
और अब सोच रहा हूँ कि ये क्या सोचा था

~ कफ़ील आज़र अमरोहवी

  May 12, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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