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Sunday, May 15, 2016

ना-शगुफ़्ता कलियों में शौक़ है



ना-शगुफ़्ता कलियों में शौक़ है तबस्सुम का
बार सह नहीं सकतीं देर तक तलातुम का
*ना-शगुफ़्ता=अनखिली; तलातुम=उथल-पुथल

जाने कितनी फ़रियादें ढल रही हैं नग़्मों में
छिड़ रही है दुख की बात नाम है तरन्नुम का

कितने बे-कराँ दरिया पार कर लिए हम ने
मौज मौज में जिन की ज़ोर था तलातुम का
*बे-कराँ=जिसके छोर का किनारा न हो

ऐ ख़याल की कलियो और मुस्कुरा लेतीं
कुछ अभी तो आया था रंग सा तबस्सुम का
*तबस्सुम=मुस्कुराहट;

गुफ़्तुगू किसी से हो तेरा ध्यान रहता है
टूट टूट जाता है सिलसिला तकल्लुम का
*तकल्लुम=बातचीत

हसरत ओ मोहब्बत से देखते रहो 'जावेद'
हाथ आ नहीं सकता हुस्न माह-ओ-अंजुम का
*माह-ओ-अंजुम=चाँद-तारे

~ फ़रीद जावेद

  May 13, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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