मेरे आंगन श्वेत कबूतर!
उड़ आया ऊंची मुंडेर से, मेरे आंगन श्वेत कबूतर!
गर्मी की हल्की संध्या यों
झांक गई मेरे आंगन में
झरीं केवड़े की कुछ बूंदें
किसी नवोढ़ा के तन-मन में;
लहर गई सतरंगी चूनर, ज्यों तन्यी के मृदुल गात पर!
उड़ आया ऊंची मुंडेर से, मेरे आंगन श्वेत कबूतर!
मेरे हाथ रची मेहंदी, उर
बगिया में बौराया फागुन
मेरे कान बजी बंसी धुन
घर आया मनचाहा पाहुन
एक पुलक प्राणों में, चितवन एक नयन में, मधुर मधुर-तर!
उड़ आया ऊंची मुंडेर से, मेरे आंगन श्वेत कबूतर!
कोई सुंदर स्वप्न सुनहले
आंचल में चंदा बन आया
कोई भटका गीत उनींदा
मेरी सांसों से टकराया;
छिटक गई हो जैसे जूही, मन प्राणों में महक महक कर!
उड़ आया ऊंची मुडेर से, मेरे आंगन श्वेत कबूतर!
मेरा चंचल गीत किलकता
घर-आंगन देहरी-दरवाजे।
दीप जलाती सांझ उतरती
प्राणों में शहनाई बाजे
अमराई में बिखर गए री, फूल सरीखे सरस सरस स्वर!
उड़ आया ऊंची मुंडेर से, मेरे आंगन श्वेत कबूतर!
~ वीरबाला भावसार
May 23, 2016| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
उड़ आया ऊंची मुंडेर से, मेरे आंगन श्वेत कबूतर!
गर्मी की हल्की संध्या यों
झांक गई मेरे आंगन में
झरीं केवड़े की कुछ बूंदें
किसी नवोढ़ा के तन-मन में;
लहर गई सतरंगी चूनर, ज्यों तन्यी के मृदुल गात पर!
उड़ आया ऊंची मुंडेर से, मेरे आंगन श्वेत कबूतर!
मेरे हाथ रची मेहंदी, उर
बगिया में बौराया फागुन
मेरे कान बजी बंसी धुन
घर आया मनचाहा पाहुन
एक पुलक प्राणों में, चितवन एक नयन में, मधुर मधुर-तर!
उड़ आया ऊंची मुंडेर से, मेरे आंगन श्वेत कबूतर!
कोई सुंदर स्वप्न सुनहले
आंचल में चंदा बन आया
कोई भटका गीत उनींदा
मेरी सांसों से टकराया;
छिटक गई हो जैसे जूही, मन प्राणों में महक महक कर!
उड़ आया ऊंची मुडेर से, मेरे आंगन श्वेत कबूतर!
मेरा चंचल गीत किलकता
घर-आंगन देहरी-दरवाजे।
दीप जलाती सांझ उतरती
प्राणों में शहनाई बाजे
अमराई में बिखर गए री, फूल सरीखे सरस सरस स्वर!
उड़ आया ऊंची मुंडेर से, मेरे आंगन श्वेत कबूतर!
~ वीरबाला भावसार
May 23, 2016| e-kavya.blogspot.com
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