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Tuesday, December 6, 2016

अहल-ए-तूफ़ाँ आओ दिल-वालों का



अहल-ए-तूफ़ाँ आओ दिल-वालों का अफ़्साना कहें
मौज को गेसू भँवर को चश्म-ए-जानाना कहें
*अहल-ए-तूफ़ाँ=तूफान में फँसे लोग; गेसू=लटें; चश्म-ए-जानाना=प्रेयसी की आँखें

दार पर चढ़ कर लगाएँ नारा-ए-ज़ुल्फ़-ए-सनम
सब हमें बाहोश समझें चाहे दीवाना कहें
*दार=फंदा; नारा-ए-ज़ुल्फ़-ए-सनम=प्रेयसी के बालों का गुणगान

यार-ए-नुक्ता-दाँ किधर है फिर चलें उस के हुज़ूर
ज़िंदगी को दिल कहें और दिल को नज़राना कहें
*यार-ए-नुक्ता-दाँ=निंदक दोस्त; नज़राना=तोहफा

थामें उस बुत की कलाई और कहें इस को जुनूँ
चूम लें मुँह और इसे अंदाज़-ए-रिंदाना कहें
*अंदाज़-ए-रिंदाना=नशे में की हुयी हरक़त

सुर्ख़ी-ए-मय कम थी मैं ने छू लिए साक़ी के होंट
सर झुका है जो भी अब अरबाब-ए-मय-ख़ाना कहें
*अरबाब-ए-मय-ख़ाना=शराब घर में साथ के लोग

तिश्नगी ही तिश्नगी है किस को कहिए मय-कदा
लब ही लब हम ने तो देखे किस को पैमाना कहें
*तिश्नगी=प्यास

पारा-ए-दिल है वतन की सरज़मीं मुश्किल ये है
शहर को वीरान या इस दिल को वीराना कहें
*पारा-ए-दिल=दिल की शांति

ऐ रुख़-ए-ज़ेबा बता दे और अभी हम कब तलक
तीरगी को शम-ए-तन्हाई को परवाना कहें
*रुख़-ए-ज़ेबा=ख़ूबसूरत चेहरा; तीरगी=अंधेरा; शम-ए-तन्हाई=एकाकीपन का चिराग़

आरज़ू ही रह गई 'मजरूह' कहते हम कभी
इक ग़ज़ल ऐसी जिसे तस्वीर-ए-जानाना कहें
*तस्वीर-ए-जानाना==प्रेयसी की तस्वीर

~ मजरूह सुल्तानपुरी


  Dec 5, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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