आज सांझ से ही ऐसा लगता है
जैसे चांद सलोना
बाद युगों के नभ में आया!
मेरा मन कुछ घबराया-घबराया-सा है
लेकिन घबराने जैसी कुछ बात नहीं है
खिली हुई है यहां चांदनी पीली-पीली
नभ में काली रात नहीं है
काली रात नहीं लेकिन लगता है मुझको
जैसे लखकर यह जहरीला चांद गगन में
तुमने कोई गीत दर्द का होगा गाया!
आकर्षण की मदिरा पी तारों की टोली
नभ के आंगन में मस्ती से नाच रही है
आया बासंती बयार का पहला झोंका
सरिता नए प्यार की गीता बांच रही है
सरिता नए प्यार की गीता बांच रही औ
हम-तुम कितनी दूर सुनयने?
आज सोच यह, मेरा मन भर-भरकर आया!
जैसे चांद सलोना
बाद युगों के नभ में आया!
~ भीमसेन त्यागी
Dec 10, 2016| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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