आज फिर दिल ने कहा आओ भुला दें यादें
ज़िंदगी बीत गई और वही यादें - यादें
जिस तरह आज ही बिछड़े हों बिछड़ने वाले
जैसे इक उम्र के दुःख याद दिला दें यादें
काश मुमकिन हो कि इक काग़ज़ी कश्ती की तरह
ख़ुद-फरामोशी के दरिया में बहा दें यादें
*ख़ुदफरामोशी=ख़ुद को भूलना
वो भी रुत आए कि ऐ ज़ूद-फ़रामोश मेरे
फूल पत्ते तेरी यादों में बिछा दें यादें
*ज़ूद-फ़रामोश=भुलक्कड़
जैसे चाहत भी कोई जुर्म हो और जुर्म भी वो
जिसकी पादाश में ता-उम्र सज़ा दें यादें
*पादाश=जुर्म की सजा
भूल जाना भी तो इक तरह की नेअमत है ‘फ़राज़’
वरना इंसान को पागल न बना दें यादें
~ अहमद फ़राज़
Dec 18, 2016| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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