Disable Copy Text

Tuesday, December 6, 2016

ख़ुद पुकारेगी जो मंज़िल तो

Image may contain: 1 person

ख़ुद पुकारेगी जो मंज़िल तो ठहर जाऊँगा
वर्ना ख़ुद्दार मुसाफ़िर हूँ गुज़र जाऊँगा

आँधियों का मुझे क्या ख़ौफ़ मैं पत्थर ठहरा
रेत का ढेर नहीं हूँ जो बिखर जाऊँगा

ज़िंदगी अपनी किताबों में छुपा ले वर्ना
तेरे औराक़ के मानिंद बिखर जाऊँगा
*औराक़=पेड़ की पत्तियाँ

मैं हूँ अब तेरे ख़यालात का इक अक्स-ए-जमील
आईना-ख़ाने से निकला तो किधर जाऊँगा
*अक्स-ए-जमील=सुंदरता का प्रतिबिम्ब; आईना-ख़ाना=शीशा घर

मुझ को हालात में उलझा हुआ रहने दे यूँ ही
मैं तिरी ज़ुल्फ़ नहीं हूँ जो सँवर जाऊँगा

तेज़-रफ़्तार सही लाख मिरा अज़्म-ए-सफ़र
वक़्त आवाज़ जो देगा तो ठहर जाऊँगा
*अज़्म-ए-सफ़र=यात्रा का संकल्प

दम न लेने की क़सम खाई है मैं ने 'रज़्मी'
मुझ को मंज़िल भी पुकारे तो गुज़र जाऊँगा

‍~ मुज़फ़्फ़र रज़्मी


  Dec 4, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment