पद्मश्री
से सम्मानित, पूर्व राज्यसभा सदस्य, सांप्रदायिक सद्भाव के अग्रदूत,
मशहूर कवि और शायर बेकल उत्साही जी नही रहे! विनम्र श्रद्धांजलि!
सुनहरी सरज़मीं मेरी, रुपहला आसमाँ मेरा
मगर अब तक नहीं समझा, ठिकाना है कहाँ मेरा
किसी बस्ती को जब जलते हुए देखा तो ये सोचा
मैं ख़ुद ही जल रहा हूँ और फैला है धुआँ मेरा
सुकूँ पाएँ चमन वाले हर इक घर रोशनी पहुँचे
मुझे अच्छा लगेगा तुम जला दो आशियाँ मेरा
बचाकर रख उसे मंज़िल से पहले रूठने वाले
तुझे रस्ता दिखाएगा गुबारे-कारवाँ मेरा
पड़ेगा वक़्त जब मेरी दुआएँ काम आएंगी
अभी कुछ तल्ख़ लगता है ये अन्दाज़-ए-बयाँ मेरा
कहीं बारूद फूलों में, कहीं शोले शिगूफ़ों में
ख़ुदा महफ़ूज़ रक्खे, है यही जन्नत निशाँ मेरा
मैं जब लौटा तो कोई और ही आबाद था "बेकल"
मैं इक रमता हुआ जोगी, नहीं कोई मकाँ मेरा
~ बेकल उत्साही
सुनहरी सरज़मीं मेरी, रुपहला आसमाँ मेरा
मगर अब तक नहीं समझा, ठिकाना है कहाँ मेरा
किसी बस्ती को जब जलते हुए देखा तो ये सोचा
मैं ख़ुद ही जल रहा हूँ और फैला है धुआँ मेरा
सुकूँ पाएँ चमन वाले हर इक घर रोशनी पहुँचे
मुझे अच्छा लगेगा तुम जला दो आशियाँ मेरा
बचाकर रख उसे मंज़िल से पहले रूठने वाले
तुझे रस्ता दिखाएगा गुबारे-कारवाँ मेरा
पड़ेगा वक़्त जब मेरी दुआएँ काम आएंगी
अभी कुछ तल्ख़ लगता है ये अन्दाज़-ए-बयाँ मेरा
कहीं बारूद फूलों में, कहीं शोले शिगूफ़ों में
ख़ुदा महफ़ूज़ रक्खे, है यही जन्नत निशाँ मेरा
मैं जब लौटा तो कोई और ही आबाद था "बेकल"
मैं इक रमता हुआ जोगी, नहीं कोई मकाँ मेरा
~ बेकल उत्साही
Dec 3, 2016| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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