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Sunday, December 18, 2016

कोहरे में चंदन वन डूब गया

Image may contain: snow, tree, sky, outdoor and nature

छोटी से बड़ी हुईं तरुओं की छायाएं
धुंधलाईं सूरज के माथे की रेखाएं
मत बांधो आंचल मे फूल, चलो लौट चलें
वह देखो, कोहरे में चंदन वन डूब गया।

माना सहमी गलियों में न रहा जाएगा
सांसों का भारीपन भी न सहा जाएगा
किन्तु विवशता यह यदि अपनों की बात चली
कांपेंगे आधर और कुछ न कहा जाएगा।

वह देखो! मंदिर वाले वट के पेड़ तले
जाने किन हाथों से दो मंगल दीप जले
और हमारे आगे अंधियारे सागर में
अपने ही मन जैसा नील गगन डूब गया।

कौन कर सका बंदी रोशनी निगाहों में
कौन रोक पाया है गंध बीच राहों में
हर जाती संध्या की अपनी मजबूरी है
कौन बांध पाया है इंद्रधनुष बाहों में।

सोने से दिन चांदी जैसी हर रात गयी
काहे का रोना जो बीती सो बात गयी
मत लाओ नैनों में नीर कौन समझेगा
एक बूंद पानी में‚ एक वचन डूब गया।

भावुकता के कैसे केश संवारे जाएं?
कैसे इन घड़ियों के चित्र उतारे जाएं?
लगता है मन की आकुलता का अर्थ यही
आगत के आगे हम हाथ पसारे जाएं।

दाह छुपाने को अब हर पल गाना होगा
हंसने वालों में रह कर मुसकाना होगा
घूंघट की ओट किसे होगा संदेह कभी
रतनारे नयनों में एक सपान डूब गया।

∼ किशन सरोज


  Dec 17, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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