मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे
मुक़द्दर में चलना था चलते रहे
मिरे रास्तों में उजाला रहा
दिए उस की आँखों में जलते रहे
कोई फूल सा हाथ काँधे पे था
मिरे पाँव शो'लों पे जलते रहे
सुना है उन्हें भी हवा लग गई
हवाओं के जो रुख़ बदलते रहे
वो क्या था जिसे हम ने ठुकरा दिया
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे
मोहब्बत अदावत वफ़ा बे-रुख़ी
किराए के घर थे बदलते रहे
लिपट कर चराग़ों से वो सो गए
जो फूलों पे करवट बदलते रहे
~ बशीर बद्र
Nov 19, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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