यक़ीन टूट चुका है गुमान बाक़ी है
हमारे सर पे अभी आसमान बाक़ी है
चले तो आए हैं हम ख़्वाब से हक़ीक़त तक
सफ़र तवील था अब तक थकान बाक़ी है
*तवील=लम्बा
उन्हें ये ज़ो'म कि फ़रियाद का चलन न रहा
हमें यक़ीन कि मुँह में ज़बान बाक़ी है
*ज़ो’म=घमंड
हर एक सम्त से पथराव है मगर अब तक
लहूलुहान परिंदे में जान बाक़ी है
*सम्त=तरफ़
फ़साना शहर की ता'मीर का सुनाने को
गली के मोड़ पे टूटा मकान बाक़ी है
*तामीर=निर्माण
मिला न जो हमें क़ातिल की आस्तीं पे 'हसन'
उसी लहू का ज़मीं पे निशान बाक़ी है
~ हसन कमाल
Jun 16, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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