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Thursday, June 25, 2020

जो थके थके से थे हौसले


जो थके थके से थे हौसले वो शबाब बन के मचल गए
वो नज़र नज़र से गले मिले तो बुझे चराग़ भी जल गए

ये शिकस्त-ए-दीद की करवटें भी बड़ी लतीफ़ ओ जमील थीं
मैं नज़र झुका के तड़प गया वो नज़र बचा के निकल गए
*शिकस्त-ए-दीद=आँखों से दूर होना; लतीफ़=कोमल; जमील=रूपवान

न ख़िज़ाँ में है कोई तीरगी न बहार में कोई रौशनी
ये नज़र नज़र के चराग़ हैं कहीं बुझ गए कहीं जल गए

जो सँभल सँभल के बहक गए वो फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-राह थे
वो मक़ाम-ए-इश्क़ को पा गए जो बहक बहक के सँभल गए
*फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-राह=रास्ते के धोखे

जो खिले हुए हैं रविश रविश वो हज़ार हुस्न-ए-चमन सही
मगर उन गुलों का जवाब क्या जो क़दम क़दम पे कुचल गए
*रविश=अंदाज़

न है 'शाइर' अब ग़म-ए-नौ-ब-नौ न वो दाग़-ए-दिल न वो आरज़ू
जिन्हें ए'तिमाद-ए-बहार है वही फूल रंग बदल गए
*ग़म-ए-नौ-ब-नौ=दुख के बाद और नया दुख; ए'तिमाद-ए-बहार=बहार का भरोसा

~ शायर लखनवी

Jun 25, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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