सीने में राज़-ए-इश्क़ छुपाया न जाएगा
ये आग वो है जिस को दबाया न जाएगा
सुन लीजिए कि है अभी आग़ाज़-ए-आशिक़ी
फिर हम से अपना हाल सुनाया न जाएगा
*आग़ाज़-ए-आशिक़ी=प्रेम का आरम्भ
अब सुल्ह-ओ-आशती के ज़माने गुज़र गए
अब दोस्ती का हाथ बढ़ाया न जाएगा
*सुल्ह-ओ-आशती=शांति और समझौता
हम आह तक भी ला न सकेंगे ज़बान पर
वो रूठ जाएँगे तो मनाया न जाएगा
वो दूर हैं तो दिल को है इक इज़्तिराब सा
वो आएँगे तो आप में आया न जाएगा
*इज़्तिराब= बेचैनी
~ हमीद जालंधरी
Jun 23, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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